कवितायों में अपनी कई राज छुपा रखा हूँ ,
मन में दबी कई बात बता रहा हूँ ,
आम आदमी की ये बात पुरानी है
चिंगारी बन के इक आग जला रहा हूँ
दब रही है जो सच की आवाजे
सुर में सुर मिला के उसे बढ़ा रहा हूँ .....
मेरा डर मेरी पारछइ ही क्यों है
भाग रहा हूँ खुद से ही या,
फिर कही छूप रहा हूँ
या फिर समाज की रीतो से कही दब रहा हूँ
बंद कमरों में हूँ या फिर खुले आसमा में
अपनी कवितायों से कई बात बता रहा हूँ.......
हर सुबह उदास ही क्यों है
सपनो को उरान दे रहा हूँ या ,
फिर अपने सपनो के भंवर में कही फंस रहा हूँ
पंख है पर पिंजरों से घिर चूका हूँ
अनकही बातो को फिर से आवाज दे रहा हूँ
कवितायों में अपनी कई राज छुपा रखा हूँ.....................
kushagra manash........
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